जालौर के सोनगरा वीरमदेव जी का इतिहास
* राई रा भाव रात बीत ग्या *
" राई दे दो सा...राई
आज आधी रात तक मुंह मांग्या दाम है सा
राई दे दो सा...राई
घुड़सवार नगाड़े बजाते हुए जालौर के बाजार की गलियों मे घूम रहे थे
लोग अचंभित थे लेकिन राई के मुंह मांगे दाम मिल रहे थे इसीलिए किसी ने इस बात पर गौर करना उचित नहीं समझा की आखिर में एकाएक राई के मुंह मांगे दाम क्यों मिल रहे हैं!
शाम होते-होते शहर के हर घर से राई गुड सवारों ने खरीद ली थी
अगली सुबह सूरज की पहली किरण के साथ ही दुर्ग से अग्नि ज्वाला की लपटें उठती देख लोगों का अंदेशा हो गया था आज का दिन जालौर के इतिहास के पन्नों में जरूर सुनहरे अक्षरों में लिखा जाने वाला है या जालौर की प्रजा के लिए काला दिवस साबित होने वाला है
प्रातः दुर्ग में दासी ने थाली में गेहूं पीसने से पहले साफ करने थाली में लिए ही थे कि अचानक थाली में पड़े गेहूं में हलचल हुई ।
फर्श पर पड़े गेहूं से भरी थाली में अचानक कंपन होने लगी।
दासी को भारी अनिष्ट की आशंका हुई। दासी दौड़ती हुई राजा
कान्हड्देव के पास गई और थाली में कंपन वाली बात बताइए।
राजा को एहसास हो गया की हो ना हो किसी बेरी ने दुर्ग के कमजोर हिस्से की जानकारी दुश्मन को दे दी है।
दुर्ग का निर्माण करते समय एक कोना शेष रह गया था।
तभी संदेशा मिल गया था कि बादशाह अलाउद्दीन खिलजी की सेना जालौर दुर्ग पर कब्जा करने कुछ कर चुकी है। अतः आनन-फानन में शेष बचे दुर्ग के उस हिस्से को मिट्टी और गोबर से लिप के बना दिया था। यह जानकारी कुछ गिने-चुने विश्वासपात्र लोगों को ही थी।
खिलजी की सेना कही महीन दुर्ग को घेर कर बैठी रही । पर लेकिन दुर्ग की दीवार को भेदना असंभव हो गया था । सेना इसी आस मे बैठी थी की आखिर जब किले मे राशन पानी खत्म हो जायेगा तब राजपूत शाका जरूर करेंगे । तभी बिका दहिया नाम के भेदी ने जा कर खिलजी के सेनापति को दुर्ग की दीवार के कच्चे भाग की जानकारी दे दी थी। बिका दहिया को ये पता था की दीवार का एक भाग कच्चा है पर उसको ये पता नही था कोनसा भाग कमजोर और कच्चा है।
मुगल सेनापति ने कयास लगाया क्यों न पूरी दीवार पर पानी छिड़क कर राई डाल दी जाए ताकि सुबह तक जो भाग कच्ची मिट्टी और गोबर से बना होगा वहां राय अंकुरित हो जाएगी ताकि हम को पता चल जाएगा कि कौन सा भा हिस्सा कमजोर है।
काहन्नड़देव ने दरबार बुलाया, क्षत्राणियो को भी संदेश पहुंचाया गया कि आज मर्यादा की बलिवेदी प्राणों की आहुति मांग रही है।
* चेत मानखा दिन आया , रणभेरी आज बजवाला आया *
* उठो आज पसवाडो फेरो , सुता सिंह जगवाला आया *
रानी महल में जोहर की तैयारियां शुरू हुई। इधर क्षत्राणिया सोलह श्रृंगार कर सज धज कर अपनी मर्यादा की बलिवेदी पर अग्नि कुंड मैं स्नान हेतु तैयार थी। उधर रणबांकुरे केसरिया बाना पहन कर रणभूमि शाका के लिए तैयार थे।
दिन चढ़ने तक पूरा दुर्ग जय भवानी के नारों से गूंज रहा था। इधर क्षत्राणिया एक एक कर अग्नि स्नान हेतु जौहर कुंड में कूद रही थी।
उत्तर रणबांकुरे मुगलों पर टूट पड़ते हैं गाजर मूली की तरह काट रहे थे।
नर मुनि इस तरह कट कर गिर रहे थे जैसे सब्जी काटी जा रही हो।
* जौहर री जागी आग अठे *
* रण मिलग्या राग विराग अठे *
* तलवार उठी रण खेता मे ।*
* इतिहास मंडयोडा रेता मे *
मुट्ठी भर रणबांकुरे हजारों की सेना के आगे कब तक बातें।
पिता-पुत्र कन्नड़ देव वीरमदेव जैसे साक्षात महाकाल
रणभूमि में तांडव कर रहे हो तभी अचानक पीठ पीछे से वार कर वीरमदेव का सर धड़ से अलग कर दिया।
युद्ध में साथ आई मुगल दासी ने वीरमदेव का सिर थाली में लिया और तो सम्मान दिल्ली के लिए रवाना हो गई ताकि अलाउद्दीन खिलजी की पुत्री फिरोजा को दिया वचन पूरा कर सकें।
सोनगरा का सिर्फ दासी की थाली में और धड़ रणभूमि में कोहराम मचा रहा था।
दिन ढलते ढलते सभी क्षत्रिय रणबांकुरे मातृभूमि और स्वाभिमान की रक्षा करते हैं हुए मातृभूमि के काम आ चुके थे।
लेकिन वीरमदेव का धड़ अभी भी कोहराम मचा रहा था।
* आप फटे धर उल्टे, कटे बगत रा कोर *
* शीश कटे धड़ तरफ़ड़े, तब छूटे जालौर*
कभी किसी ने कहा धड़ को अशुद्ध करो, मुगल सेनापति ने धड़ पर अशुद्ध जल को छिड़का धड़ शांत हो गया।
मुगलों ने दुर्ग पर विजय प्राप्त कर ली थी लेकिन चारों तरफ नरमुंडो लाशों के ढेर पड़े। दुर्ग की नालियों में पानी की जगह खून बह रहा था वीरान दुर्ग सोनगरा के बलिदान पर आज भी सीना तान के खड़ा है
शाम को लालसी सेठ अपनी राई बेचने निकला ।
राई ले लो राई.....
पास से गुजरते सैनिक से पूछा
"भाई आज राई नही खरीदोगे "
सिपाही ने जवाब दिया
* भाया राई रा भाव राते ई बीत गया भाया *
उधर वीरमदेव सिर लिए दासी दिल्ली स्थित फिरोजा के महल पहुँची
और शहजादी के समक्ष थाली में सजा सोनगरा का सिर रखा।
फिरोजा ने जैसे ही थाल में सजे सोनगरा के सिर से औसार
( थाल ढकने का वस्त्र) हटाया। सोनगरा का स्वाभिमानी सिर उल्टा घूम गया। फिरोजा ने अंतिम निवेदन करते हुए कहां।
*" तज तुरकाणी चाल हिंदूआणि हुई हमें ,*
*भो - भो रा भरतार , शीश न घुण सोनगरा *
* जग जाणी रे शूरमा , मुछा तणी आवत **
* रमणि रमता रम रमी , झुकिया नही चौहान **
कहते है की शहजादी ने मस्तक से शादी की बात कहीं तो थाली मे रखा मस्तक पलट गया था।
लेकिन शहजादी अडिग थी शादी करूँगी तो विरम देव से नही तो कुवारी मर जाऊँगी ।
अंतत: शहजादी फिरोज मैं उनके मस्तक का अग्नि संस्कार कर
खुद अपनी मां से आज्ञा लेकर यमुना नदी के जल में प्रविष्ट हो गई।
जय जालौर जय राजपुताना 🙏
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