गौड़ वंश की कुलदेवी और गौड़ वंश के गोत्र - प्रवशदि

गौड़ क्षत्रिय राजवंश शक्ति की प्रतीक महाकाली के उपासक रहे हैं।

काली कलिका , महाकालिका का समीश्रित रूप महाकाली को गौड़ क्षत्रिय अपनी कुलदेवी मानते हैं।

वंश : सूर्यवंश
गोत्र : भारद्वाज, प्रवर : भारद्वाज 
बाईस्पत्य :अंगिरस, वेद : यजुर्वेद 
शाखा : वाजसनेयी,
सूत्र : पारस्कर, कुलदेवी : मां काली , इष्टदेव : रुद्रदेव ,
वृक्ष : केला, ग्रहदेवी : नारायणी माता, भैरव : गयासुर, नदी : गिलखा, तालाब : गया सागर,
गुरु : वशिष्ठ , किले की देवी : दुर्गा , ढाल : आशावरी, तलवार : रंग रूप , बंदूक : संदाण, तोप : कटक बिजली, कटार : रणवीर, छूरी : अस्पात, ढोल : जीतपाल ,
नगारा : रणजीत, घाट : हरिद्वार
तीर्थ : द्वारिका, भाट : करणोत, चारण : मेहसन,
ढोली : डोगव, बलाई : भाटियो, नाई : लिलडियो ,
शाखाएं : अमेठिया गौड़,अजमेरा गौड़, मरोठिया गौड़, अर्जुंनदासोत गौड़,बलभद्र , चमर गौड़, भट्ट गौड़, गौडहर गौड़, वैध गौड़, सुकेल गौड़, पिपरिया गौड़, 
गढ़ : पहला बंगाल, दूजा अजमेर ,
गौड़ क्षत्रिय भगवान श्री राम के छोटे भाई भरत के वंशज हैं। ये विशुद्ध सूर्यवंशी कुल के है जब श्री अयोध्या के सम्राट बने तब महाराज भरत को गंधार प्रदेश का स्वामी बनाया गया महाराज भरत के दो बेटे हुए तक्ष एवं पुष्कल जिन्होंने क्रमश : प्रसिद्ध नगरी तक्षशिला (सुप्रसिद्ध विश्वविद्यालय) एवं पुष्कलावती (जो अब पेशावर है) बसाई । एक किवंदती  के अनुसार गंधार का अपभ्रंश गौर हो गया जो आगे चलकर राजस्थान में स्थानिक भाषा के प्रभाव में आकर गौड़ हो गया। महाभारत काल में इस वंश का राजा जयद्रथ था ।  कालांतर में सिंहदित्य तथा लक्ष्मणादित्य दो प्रतापी राजा हुए जिन्होंने अपना राज्य गंधार से राजस्थान तथा कुरुक्षेत्र तक विस्तृत कर लिया था। पूज्य गोपीचंद जो सम्राट विक्रमादित्य तथा तथा भर्तहरि के भांजे थे इसी वंश के थे । बाद में इस वंश के क्षत्रिय बंगाल चले गए जिसे गौड़ बंगाल कहा जाने लगा ।आज भी गौड़ राजपूतों की कुलदेवी मां काली का प्राचीनतम मंदिर बंगाल में है जो अब बांग्लादेश में चला गया है।
राजस्थान में गौड़ राजपूत प्राचीन काल से रहते आये हैं। 
मारवाड़ क्षेत्र में एक क्षेत्र आज भी गौड़वाड़ व गौडाटी कहलाता है जो कभी गौड़ राजपूतों के अधिकार क्षेत्र में रहा  और वहां वे निवास करते थे। राजपूत वंशावली के अनुसार सबसे पहले सीताराम गौड बंगाल से राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में आये। यही से बाहरदेव व नाहरदेव दो गौड़ कन्नौज सम्राट नागभट्ट द्वितीय के पास पहुंचे। जिनको नागभट्ट ने कालपी व नार ( कानपुर) क्षेत्र जागीर में दिया । इन्हीं के वंशज आज उत्तर प्रदेश के इटावा ,बदायूं ,कन्नौज , मोरादाबाद, अलीगढ़ ,में निवास करते हैं । नार क्षेत्र में आगे की पीढ़ियों में हुए वत्सराज, वामन व सूरसेन नामक गौड़ वि.स १२०६ में पुष्कर तीर्थ स्नान हेतू राजस्थान आये ।  उस समय दहिया राजपूत अजमेर में चौहानों के सामंत थे जिन्होंने चौहानो से विद्रोह कर रखा था । तत्कालीन चौहान शासक विग्रहराज तृतीय ने विद्रोह दबाने गौड़ों को भेजा। गौड़ों ने दहियाओ का विद्रोह दबा दिया तथा प्रसन्न होकर चौहान शासक ने इनको केकडी, जूनियां, देवलिया, और सरवाड के परगने जागीर में दिये। वत्सराज के अधिकार में केकड़ी, जूनिया, सरवाड़, व देवलिया के परगने रहे वहीं वामन के अधिकार में मोथड़ी , मारोठ परगना रहा । महान राजपूत सम्राट पृथ्वीराज चौहान के प्रसिद्ध गौड़ सावंत थे। जिनमें रण सिंह गौड़ तथा बुलंदशहर का राजा रणवीर सिंह गौड़ प्रमुख थे। पृथ्वीराज रासो में और भी कई गौड़ सामंत का जिक्र आता है। चंदरबरदाई ने गौड़ों की प्रशंसा में लिखा है
"बलहट बांका देवड़ा, करतब बांका गौड़।"
हाडा बांका गाढ़ में, रण बांका राठौड़ ।"
वही कर्नल टाड़ ने लिखा है की गौड़ अपने समय के सर्वश्रेष्ठ उस वास्ते घुड़सवार थे  टाड़ के अनुसार एक समय इस जाति का राजस्थान में अत्यंत सम्मान था, जो बाद में धीरे-धीरे समाप्त हो गया । पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद राजस्थान में गौड़ों की शक्ति भी क्षीण हो गई। 
बाद में शाहजहाँ ने गोपालदास खुर्रम के साथ दक्षिण की ओर गया , जब खुर्रम ने थट्टा का घेरा डाला तब डाला तब गोपाल दास अपने 17 पुत्रों सहित युद्ध में लड़े और वीरगति को प्राप्त हुए खुर्रम जब शांहजाह के नाम से बादशाह बना तब गोपालदस के पुत्र विट्ठल दास को तीन हजार जात और पन्द्रह सो सवार का मंसब दिया । विट्ठल दास रणथंभोर वाह आगरा किले का दुर्गा अध्यक्ष भी रहा व कंधार के युद्धों में भी भाग लिया । विट्ठल दास के एक पुत्र अर्जुन के पास अजमेर के निकट राजगढ़ जागीर में था । इसी अर्जुन के हाथों इतिहास प्रसिद्ध वीर अमर सिंह राठौड़ मारे गए थे । अर्जुन के एक भाई के पास सवाई माधोपुर के पास बोल परगना था । मारोठ क्षेत्र के गोडरू मारोठ व मोथड़ी के जागीदार वामन के पौत्र मोटेराव कुचामन के व जालिम सिंह मारोठ के स्वामी बने। इस क्षेत्र में गौड़ राजपूतो ने अपना प्रभाव बढ़ाया व राज्य विस्तार किया। गौड़ो द्वारा शासित होने के कारण आज भी यह प्रदेश गौड़ाटी के नाम से प्रसिद्ध है यहां के गौड़ों ने आमेर राज्य से भी युद्ध किया था।16 वी सदी की शुरुआत में रिडमल गौड मारोठ के शासक हुए जो क्षेत्र के गौड शासकों के पाटवी नेता थे। घाटवा के नजदीक कोलोलाव तालाब पर कोलराज गौड द्वारा एक राजपूत स्त्री का अपमान करने के बाद राव शेखा द्वारा उस स्त्री के सम्मान की रक्षार्थ कोलराज गौड़ की हत्या के बाद गौड़ों के निकट भी संबंध राव शेखा से 12 लड़ाइयां हुईं। बारहवीं लड़ाई पूरी गौड़ शक्ति एकत्रित कर मारोठ के अनुभवी शासक रिडमल के नेतृत्व में लड़ी गई । लेकिन राव शेखा के प्रति क्रोध अनुशासनहीनता और अपने अनुभवी नेता के व्यूह रचना के नियम की अनदेखी करने के चलते गौड़ सेना अपने से भी बहुत छोटी सेना के हाथों हार गई और रिडमल को राव शेखा के पुत्र रायमल से संधि करनी पड़ी। ज्ञात हो शेखावाटी व शेखावत वंश के प्रवर्तक राव शेखा इसी युद्ध में, जो घाटवा युद्ध के नाम से प्रसिद्ध है, विजय के उपरांत ज्यादा घायल होने के चलते वीरगति को प्राप्त हुए थे। इस संधि में रिडमल ने अपनी पुत्री का विवाह राव शेखा के प्रपोत्र लूणकर्ण के साथ किया और कई गांव भी दिए। शाहजहाँ के काल में गौड़ो का शाहजहाँ से अच्छा संबंध रहा और वे दिल्ली दरबार में प्रभावशाली रहे लेकिन औरंगजेब के काल में मारोठ के गौड़ो की स्थिति दिल्ली दरबार में कमजोर रही इसी कमजोरी का फायदा उठाते हुए रघुनाथ सिंह मेड़तिया ने गौड़ो से मारोठ छीन लिया और औरंगजेब ने भी मारोठ परगना रघुनाथ सिंह मेड़तिया के नाम कर उसे स्वीकृति दे दी मारोठ क्षेत्र से कुछ गौड़ अलवर झुंझुनू अन्य जगह चले गये। मारोठ से गए इन गौड़ों को मारोठिया गौड़ा के नाम से भी जाना जाता है। राजस्थान के इससे क्षेत्र में कभी शासक रहे इस वीर राजपूत वंश के स्थानिय इतिहास की काफी सामग्री उपलब्ध है जिस पर और गहन शोध की आवश्यकता है। अपने पड़ोसी शेखावत और राठौड़ राजपूतों से इनके वैवाहिक संबंध थे जिनकी जानकारियां भी इतिहास में प्रचुर मात्रा में मिलती है।

हमने कुछ इतिहास के छोटे अंश को लिखा है इसमें कोई त्रुटि हुई है तो क्षमा प्रार्थी हूं
अगले भाग में हम चौहान वंश और उनकी कुलदेवी के बारे में बताएंगे । 

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