अगर राजा मानसिंह मेवाड के साथ होते तो क्या प्रताप जीत जाते।
यह सिर्फ कोरी कल्पना है महाराणा प्रताप सिंह जी के पास मुश्किल से 10000 से 20000 की भीलो और राजपूतो की सेना थी।
इसके उल्ट बंगाल सल्तनत के पास ही 2 लाख की सेना थी जो मुसलमान यमन से भारत पर आक्रमण कर सकते हैं वह क्या बंगाल बिहार से उत्तर भारत राजस्थान पर आक्रमण नहीं कर सकते थे ?
शेरशाह ने यही तो किया था अगर उसी जड़ को काटने के लिए राजा मानसिंह अकबर का साथ ले लिया तो क्या गलत किया?
गुजरात सल्तनत जो कि द्वारकाधीश मंदिर तक तोड़ चुका था उसे हटाने के लिए राजा मानसिंह को अकबर की जरूरत थी और अकबर की मदद से मान सिंह ने पठानों - तुर्कों को उखाड़ फेंका ऐसे सफल रणनीतिकार का अपमान करना क्या धर्मद्रोह नही है ?
आप कहते हैं कि मानसिंह अगर महाराणा के साथ होते तो महाराणा जीत जाते तो हम कहेंगे खानवा के युद्ध में सभी राजपूत राजा एक ही थे ! खुद आमिर परिवार भी मेवाड़ के साथ था लेकिन क्या हुआ ? हम हारे हारे ही नहीं बल्कि बुरी तरह हारे ।
क्या वैसा ही विनाश मानसिंह के समय में हो जाता मानसिंह लड़कर मर जाते गुजरात बंगाल सब हाथ से चला जाता है छोटे से राजस्थान की बंजर भूमि से हम कितने दिन धर्म को बचा लेते हैं । गरीबी सबका धर्म परिवर्तन करवा देती हैं
अतः यह तर्क अतिशयोक्ति है की अगर महाराणा - मानसिंह साथ होते तो हिंदू जीत जाते ।
अगर ऐसा होता भी तो अकबर पठानों के साथ मिलकर हम पर और बड़े आक्रमण करता, सऊदी अरब से लेकर भारत के बंगाल ,गुजरात, मालवा ,की सेना राजस्थान के सभी राजाओं पर चढ़ाई करती, फिर क्या बचता हमारे पास?
क्या जोधा का इतिहास मानसिंह का अपमान है
सर्वप्रथम तो प्रत्येक ज्ञानी इतिहासकार मानता है कि जोधा की कहानी ही कोरी कल्पना है जो अंग्रेज काल में गढ़ी गई है ।
फिर भी अगर यह बात सही है तो जनता का क्या नुकसान था?
क्या आमेर वालों ने अपनी प्रजा की बेटी ब्याही थी।
अगर कोई राजा अपनी विशाल प्रजा के लिए अपने पुत्रों /पुत्रियों का बलिदान देता है तो वह राजा के पांव धोकर पीने लायक नहीं है??
अन्य प्रदेशों मैं प्रजा की 20 लाख लड़कियों को उठाकर दमिश्क के बाजार में बेचा जाता था तब क्या हिंदुत्व की वीरता की शोभा बढ़ रही थी मान सिंह एवं आमिर परिवार ने वह सब बंद करवा दिया इसलिए आमेर परिवार दोषी है क्या?
एक राजा अपनी प्रजा की धर्म रक्षा के लिए क्या नहीं करता राजा हरिश्चंद्र ने भी अपनी संतानों तक को बोली भरे चौराहे लगा दी उन्हीं हरिश्चंद्र के वंशज तो भारमल जी थे।
खैर यह सब बातें वही सोच सकता है जिसे देश से प्यार हो हमें ही अगर देश से निश्चित प्यार होता तो सालों तक राम जी तंबू में नहीं होते कृष्ण जी की जन्म स्थान पर मजारे मस्जिद नहीं होती।
राजा मानसिंह में तो मजा रे मस्जिद तोड़ कर अपने मंदिर वापस लिए उन्हें आप धर्म भक्ति का ज्ञान देते हैं?
महाराणा प्रताप और मानसिंह
वास्तव में महाराणा प्रताप और मानसिंह दोनों ही जानते थे कि उनके एक होने से ज्यादा अलग होने में ज्यादा लाभ है पठानों और मुगलों को अलग रखने का एक मार्ग यही है।
सही मायने में महाराणा प्रताप और मानसिंह की जोड़ी अर्जुन - कृष्ण नर - नारायण की जोड़ी थी जिनकी कूटनीति के कारण पूरा भारत बच गया।
महाराणा भी जानते थे कि अगर वह आमेर के पक्ष में खड़े हो गए तो मेवाड़ ,गुजरात, और मारवाड़ ,की जनता का कछुमर निकाल दिया जाएगा।
प्रजा के हित के लिए दोनों ने ही वह किया जिसके लिए उनकी आत्मा कभी तैयार नहीं थी
इसलिए मेरा मत कभी राजा मानसिंह को गद्दार नहीं घोषित करता जो उन्होंने किया वह उनकी कूटनीति थी जो महाराणा प्रताप ने किया उनकी कूटनीति थी।
अगले लेख में और कुछ विस्तार से जानकारियां आप तक पहुंचाई जाएगी ।
https://wwwkshtariyaitihas.blogspot.com/2020/08/blog-post.html
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें